Tuesday 22 October 2013

प्रेरक व्यक्तित्व (Inspiring Personalities)



स्वामी दयानंद सरस्वती 



आर्य समाज की स्थापना करने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती मूर्ति पूजा और पाखंड के घोर विरोधी थे | जो लोग देवी –देवताओ की मुर्तियां बनाकर बाज़ार में बेचते और अपने परिवारों का खर्चा चलाते थे , उन्हें यह बात पसंद नहीं आई | वे लोग स्वामी जी से क्रुद्ध हो गए और किसी न किसी प्रकार से हर समय उन्हें हानि पहुचने की बात सोचने लगे |

एक दिन किसी पाखंडी पंडित को ऐसा अवसर मिल ही गया , जब वह स्वामी जी को हानि पहुंचा सके | उसने स्वामी जी को पान में विष दे दिया |स्वामी जी को शीघ्र ही इस बात का पता चल गया | उन्होंने बागिक्रिया’ करके तुरंत विष को शरीर से बाहर निकाल दिया | और इस प्रकार अपनी प्राणरक्षा की |

सब कुछ जानते हुए भी स्वामी जी ने अपराधी से कुछ नहीं कहा , मानों कुछ हुआ ही नहीं |
यह घटना अनुपशहर (उत्तर प्रदेश ) की है | उस समय वहां सैय्यद मुहम्मद नामक एक तहसीलदार था , जो स्वामी जी का बहुत बड़ा प्रशंसक था | जैसे ही उसे इस घटना की खबर मिली , उसने अपराधी को तुरंत बंदी बना लिया |
यह काम करके प्रशंसा पाने के उद्देश्य से तहसीलदार स्वामी जी के पास गया और उन्हें सारी घटना बता दी | स्वामी जी को तहसीलदार का यह कार्य बिलकुल अच्छा नहीं लगा, परन्तु वे उससे कुछ नहीं बोले |
  तहसीलदार को स्वामी जी के व्यवहार पर बहुत आश्चर्य हुआ और उसने स्वामी जी से नाराजगी का कारण पूछा | उसकी बात सुनकर स्वामी जी बोले , “ मैं संसार को बंदी बनाने का नहीं , बल्कि स्वतंत्र होने का मार्ग दिखाना चाहता हूँ | अगर दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता , तो भला हम अपनी श्रेष्ठता क्यों छोड़ें !”
स्वामी जी की बात सुनकर तहसीलदार उनके आगे नतमस्तक हो गया | स्वामी जी के निर्देश पर उसने बंदी को छोड़ दिया |

सुभाषचंद्र बोस 






नेता जी सुभाषचंद्र बोस में वीरता , साहस और देशभक्ति के गुणों के साथ – साथ सेवाभाव भी कूट कूटकर भरा था |

जब सुभाष स्कूल में पढ़ते थे , तब कटक शहर में हैजा फ़ैल गया | हजारों लोग मौत के मुंह में समाने लगे | सुभाष अपने साथियों के साथ बीमार लोगों की सेवा में जुट गए |

कुछ लोगों को किसी के द्वारा किए जाने वाले अच्छे कार्य भी बुरे ही लगते हैं | हैदर नाम के एक गुंडे ने उनके सेवा – कार्यो की आलोचना करनी शुरू कर दी , लेकिन इसी बीच हैदर के परिवार के भी कई सदस्य हैजे की चपेट में आ गए |
कोई उनकी सहायता करने के लिए आगे नहीं आया | परन्तु सुभाष तो अतिशय छ्माशील थे , इसलिए हैदर की आलोचना को ध्यान में न रखकर उनहोंने तथा उनके साथियों ने हैदर के परिवार की खूब सेवा की | उन सभी ने मिलकर हैदर के घर और आसपास की सफाई भी की |
यह देखकर हैदर को बहुत शर्मिंदगी हुई | उसने अपनी गलती के लिए सुभाष से छमा मांगी और फुट फुटकर रोने लगा |
यह देखकर सुभाष को दया आ गई | वे बोले , “रो मत भाई ! तुम्हारे परिवार के लोग जल्दी ही ठीक हो जाएँगे | हम तो अपना कर्तव्य ही निबाह रहे हैं |किसी के दुःख में साथ देना ही तो मनुष्य का धर्म है !”

एस प्रकार , अपने सेवाभाव से नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने एक दुष्ट व्यक्ति का भी ह्रदय परिवर्तित कर दिया |

क्रोध को कमजोरी नहीं ताकत बनाओ|




एक 12-13 साल के लड़के को बहुत क्रोध आता था। उसके पिता ने उसे ढेर सारी कीलें दीं और कहा कि जब भी उसे क्रोध आए वो घर के सामने लगे पेड़ में वह कीलें ठोंक दे।

पहले दिन लड़के ने पेड़ में 30 कीलें ठोंकी। अगले कुछ हफ्तों में उसे अपने क्रोध पर धीरे-धीरे नियंत्रण करना आ गया। अब वह पेड़ में प्रतिदिन इक्का-दुक्का कीलें ही ठोंकता था। 

 उसे यह समझ में गया था कि पेड़ में कीलें ठोंकने के बजाय क्रोध पर नियंत्रण करना आसान था। एक दिन ऐसा भी आया जब उसने पेड़ में एक भी कील नहीं ठोंकी। जब उसने अपने पिता को यह बताया तो पिता ने उससे कहा कि वह सारी कीलों को पेड़ से निकाल दे।

लड़के ने बड़ी मेहनत करके जैसे-तैसे पेड़ से सारी कीलें खींचकर निकाल दीं। जब उसने अपने पिता को काम पूरा हो जाने के बारे में बताया तो पिता बेटे का हाथ थामकर उसे पेड़ के पास लेकर गया।  

पिता ने पेड़ को देखते हुए बेटे से कहातुमने बहुत अच्छा काम किया, मेरे बेटे, लेकिन पेड़ के तने पर बने सैकडों कीलों के इन निशानों को देखो।

 
अब यह पेड़ इतना खूबसूरत नहीं रहा। हर बार जब तुम क्रोध किया करते थे तब इसी तरह के निशान दूसरों 

के मन पर बन जाते थे। अगर तुम किसी के पेट में छुरा घोंपकर बाद में हजारों बार माफी मांग भी लो तब भी घाव का निशान वहां हमेशा बना रहेगा।

अपने मन-वचन-कर्म से कभी भी ऐसा कृत्य करो जिसके लिए तुम्हें सदैव पछताना पड़े | क्रोध को कमजोरी नहीं ताकत बनाओ|