स्वामी दयानंद सरस्वती
आर्य समाज की स्थापना करने वाले स्वामी दयानंद
सरस्वती मूर्ति पूजा और पाखंड के घोर विरोधी थे | जो लोग देवी –देवताओ की
मुर्तियां बनाकर बाज़ार में बेचते और अपने परिवारों का खर्चा चलाते थे , उन्हें यह
बात पसंद नहीं आई | वे लोग स्वामी जी से क्रुद्ध हो गए और किसी न किसी प्रकार से
हर समय उन्हें हानि पहुचने की बात सोचने लगे |
एक दिन किसी पाखंडी पंडित को ऐसा अवसर मिल ही गया
, जब वह स्वामी जी को हानि पहुंचा सके | उसने स्वामी जी को पान में विष दे दिया
|स्वामी जी को शीघ्र ही इस बात का पता चल गया | उन्होंने बागिक्रिया’ करके तुरंत
विष को शरीर से बाहर निकाल दिया | और इस प्रकार अपनी प्राणरक्षा की |
सब कुछ जानते हुए भी स्वामी जी ने अपराधी से कुछ
नहीं कहा , मानों कुछ हुआ ही नहीं |
यह घटना अनुपशहर (उत्तर प्रदेश ) की है | उस समय
वहां सैय्यद मुहम्मद नामक एक तहसीलदार था , जो स्वामी जी का बहुत बड़ा प्रशंसक था |
जैसे ही उसे इस घटना की खबर मिली , उसने अपराधी को तुरंत बंदी बना लिया |
यह काम करके प्रशंसा पाने के उद्देश्य से
तहसीलदार स्वामी जी के पास गया और उन्हें सारी घटना बता दी | स्वामी जी को
तहसीलदार का यह कार्य बिलकुल अच्छा नहीं लगा, परन्तु वे उससे कुछ नहीं बोले |
तहसीलदार
को स्वामी जी के व्यवहार पर बहुत आश्चर्य हुआ और उसने स्वामी जी से नाराजगी का
कारण पूछा | उसकी बात सुनकर स्वामी जी बोले , “ मैं संसार को बंदी बनाने का नहीं ,
बल्कि स्वतंत्र होने का मार्ग दिखाना चाहता हूँ | अगर दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं
छोड़ता , तो भला हम अपनी श्रेष्ठता क्यों छोड़ें !”
स्वामी जी की बात सुनकर तहसीलदार उनके आगे
नतमस्तक हो गया | स्वामी जी के निर्देश पर उसने बंदी को छोड़ दिया |
नेता जी सुभाषचंद्र बोस में वीरता , साहस और देशभक्ति के गुणों के साथ – साथ सेवाभाव भी कूट कूटकर भरा था |
जब सुभाष स्कूल में पढ़ते थे , तब कटक शहर में
हैजा फ़ैल गया | हजारों लोग मौत के मुंह में समाने लगे | सुभाष अपने साथियों के साथ
बीमार लोगों की सेवा में जुट गए |
कुछ लोगों को किसी के द्वारा किए जाने वाले अच्छे
कार्य भी बुरे ही लगते हैं | हैदर नाम के एक गुंडे ने उनके सेवा – कार्यो की
आलोचना करनी शुरू कर दी , लेकिन इसी बीच हैदर के परिवार के भी कई सदस्य हैजे की
चपेट में आ गए |
कोई उनकी सहायता करने के लिए आगे नहीं आया |
परन्तु सुभाष तो अतिशय छ्माशील थे , इसलिए हैदर की आलोचना को ध्यान में न रखकर
उनहोंने तथा उनके साथियों ने हैदर के परिवार की खूब सेवा की | उन सभी ने मिलकर
हैदर के घर और आसपास की सफाई भी की |
यह देखकर हैदर को बहुत शर्मिंदगी हुई | उसने अपनी
गलती के लिए सुभाष से छमा मांगी और फुट फुटकर रोने लगा |
यह देखकर सुभाष को दया आ गई | वे बोले , “रो मत
भाई ! तुम्हारे परिवार के लोग जल्दी ही ठीक हो जाएँगे | हम तो अपना कर्तव्य ही
निबाह रहे हैं |किसी के दुःख में साथ देना ही तो मनुष्य का धर्म है !”
एस प्रकार , अपने सेवाभाव से नेता जी
सुभाषचंद्र बोस ने एक दुष्ट व्यक्ति का भी ह्रदय परिवर्तित कर दिया |